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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "अखिल भारतीय आर्यसमाज विवाह सेवा" (All India Arya Samaj Marriage Helpline) अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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आर्यसमाज का दायित्व

आर्यसमाज की स्थापना कांग्रेस के जन्म से दस वर्ष पहले हो चुकी थी। डा. पट्टाभि सीतारमैया के शब्दों में स्वराज्य के जो स्वर 1906 में कांग्रेस के मंच पर मुखरित हुए उसकी सम्पूर्ण योजना और कार्यक्रम आर्यसमाज के प्रवर्त्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 में ही देशवासियों को दे दी थी। अपने प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में स्वराज्य को सुराज में बदलने की रूपरेखा भी अंग्रेजी राज को भारत से उखाड़ने के साथ-साथ स्वामी जी ने उन्हीं दिनों अपने ग्रन्थों में लिख दी थी। सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा को विदेश में भेजकर स्वराज्य के लिए भूमिका तैयार करने में भी स्वामीजी की दूरदृष्टि काम कर रही थी। भारत में देशी राजाओं को जो 1857 की क्रान्ति में छुपे बैठे रहे उनको कर्त्तव्य बोध कराने में स्वामी जी ने कई बार देशी रियासतों की यात्रा की। उनके महाप्रयाण के बाद आर्यसमाज के बहुत से नेता राष्ट्रीय आन्दोलन की अगली पंक्ति में रहकर स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व करते रहे। अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द, पंजाब केसरी लाला लाजपतराय, देवतास्वरूप भाई परमानन्द, चौधरी रामभजदत्त आदि नेता उसी पीढी के थे। क्रान्तिकारी आन्दोलन में भी सरदार भगतसिंह और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे कई उभरते व्यक्तित्व आर्य समाज ने देश को दिये। पर इतना सब कुछ ज्ञान होने के बाद भी आर्यसमाज विशुद्ध रूप से सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन रहकर ही कार्य करे यह ही सब की इच्छा रही। परन्तु राजनीति से सदा आंख बन्द रहें और आर्यसमाज राजनीति का निर्देश भी न करे यह अभिप्राय किसी का नहीं था।

Ved Katha 1 part 3 (Greatness of India & Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

अंग्रेज भारत को आर्थिक गुलामी में जकड़ने के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक बन्धनों में भी बान्धकर रखना चाहता था। इसके लिए अंग्रेजों ने जहॉं ईसाई मिशनरियों का जाल पूरे भारत में फैला दिया वहॉं सरकारी शिक्षण संस्थाओं का भी खुलकर उपयोग इसमें किया जा रहा था। लार्ड मैकाले ने इसी तरह की अपनी सफलता का उल्लेख करते हुए एक पत्र में लिखा था- वह दिन दूर नहीं जब भारतीय मन और मस्तिष्क दोनों से हमारे षड्‌यन्त्र का शिकार हो चुके होंगे। शरीर से भले ही वह हिन्दुस्तानी लगें पर उनके विचारों और वेशभूषा पर हम पूरी तरह से छा जाएंगे। आर्यसमाज ने इस चुनौती का भी मजबूती से सामना किया। उसके गुरुकुल और डी.ए.वी. कालेज जहॉं युवा पीढी में राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरने में लगे थे वहॉं ईसाई मिशनरियों की दुकानें बन्द करवाने में भी आर्यसमाज ने प्रमुख भूमिका निभाई। यह बात दूसरी है किसी राजसत्ता अथवा बड़े धनपति का हाथ कमर पर न होने से कुछ क्षेत्रों में उतना काम न हो सका जितना आवश्यक था। फिर भी मिशनरियों को नाकों चने चबवा दिये। भारत के पूर्वी भागों में जहॉं आर्यसमाज की शाखाएं नहीं थीवहॉं जरूर कुछ इन्होंने अपने पंजे जमायेपर देश के मध्यवर्ती क्षेत्रों से निराशा भी उनको हाथ लगी।

सामाजिक और राजनीतिक सुधार एक-दूसरे के पूरक हैं। आर्यसमाज प्रारम्भ से ही इसे जानता था। इसीलिए हरिजनोंआदिवासियोंमहिलाओं की शिक्षा और उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने में प्रारम्भ से ही आर्यसमाज ने विशेष यत्न किया। हिन्दु समाज ने भी यदि इसमें साथ दे दिया होता तो तस्वीर आज कुछ और ही होती। फिर भी सवा सौ वर्षों में इस क्षेत्र में की गई आर्यसमाज की सेवाएं आज इतिहास का विषय बन गयी हैं। भारतीय संविधान में अस्पृश्यता अपराध माना गया हैं। हरिजनों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्हें नौकरियों और विधानमण्डलों में विशेष संरक्षण देने की भी व्यवस्था की गयी है। आजकल अतिरिक्त भूमि के वितरण में भी हरिजन परिवारों को प्राथमिकता दी जा रही है। पर क्या इससे समस्या का समाधान हो गयायह तो प्रारम्भिक प्रयास मात्र है। इसमें अभी बहुत कुछ क्रान्तिकारी परिवर्तन करने होंगे।

जन्म से जात-पात की समाप्ति और अन्तरजातीय सम्बन्धों के विकास में आर्यसमाज ने प्रारम्भ से ही अच्छी रुचि ली है। परन्तु अब लगता है कुछ इसमें शिथिलता आ रही है। इसके लिए शासन के स्तर पर जहॉं कुछ सुधार अपेक्षित हैं वहॉं सामाजिक स्तर पर भी नये पग उठाने होंगे। अनेक प्रान्तों की सरकार ने अन्तरजातीय विवाह करने वालों को सरकार की ओर से आर्थिक सहयोग और नौकरियों में प्राथमिकता देने का अभियान प्रारम्भ किया हैवह अनुकरणीय है। आर्यसमाज यदि इस के लिए अनुकूल भूमिका तैयार करे तो उसमें केवल हिन्दू समाज का ही नहीं सम्पूर्ण मानव समाज का बहुत भला हो सकता है। इसके लिए पहले अपने संगठन में उन अधिकारियों को प्रमुखता दी जाये जिन्होंने जात-पात से ऊपर उठकर अपना पारिवारिक विस्तार अथवा वैवाहिक सम्बन्ध किये हैं। आर्यसमाज के सदस्य और पदाधिकारी ही कहीं-कहीं अपने नाम के साथ जब जातिवाचक शब्द लगाते हैं तो उनकी आस्था में सन्देह होने लगता है। आर्यसमाज की शिक्षण संस्थाओं में पढने और पढाने वाले छात्रों एवं अध्यापकों के नामों के साथ भी जातिवाचक शब्दों का रहना उपहासास्पद लगता है। यहीं से जातिपरक शब्दों के लिए मोह जागता है। यदि आर्यसमाज इस दिशा में पहल करे तो शासन को विवश होकर इस ओर झुकना पड़ेगा। जब तक देश में जात-पात की बुराई जीवित रहेगी तब तक हरिजन समस्या के समाधान में बहुत बड़ी बाधा खड़ी रहेगी।

पराधीन भारत में जिस शराब की बुराई से मुक्ति  लेने का दृढ संकल्प किया गया थावह दुर्भाग्य से स्वाधीनता के 68 वर्ष बाद और भी कई गुणा बढ गई है। कई राज्य सरकारों का भी इसमें प्रमुख हाथ रहा। राज्य की आय बढाने के चक्कर में आँख मून्दकर शराब के लाइसेंस दिये जाते रहे। पर आर्यसमाज जैसे समाज सुधारक संगठन मजबूती से यदि इस ओर लग जायें तो समाज और सरकार दोनों को सही रास्ते पर आना पड़ेगा। मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले चाहे कितना ही बड़े से बड़ा नेता क्यों न हो उसका और सरकारी अधिकारियों का जब तक खुलकर जनता में विरोध नहीं किया जायेगा तब तक यह बुराई देश से जायेगी नहीं। राजनीति से पृथक रहते हुए भी कृतसंकल्प होकर यदि आर्यसमाज ने इस बुराई को दूर करने का बीड़ा उठा लिया तो भावी भारत उसका ऋणी रहेगा।

इसी तरह की एक और कमजोरी जो आज पूरे देश को स्वाधीन होने के बाद भी फिर से दासता के शिकंजों में जकड़ रही है वह है अंग्रेजी भाषा के बढते हुए वर्चस्व की। एक बार तो यह लगने लगा था कि अंग्रेजी के नाम लेवा और पानी देवा अब इस देश में ढूढने पर भी नहीं मिलेंगे। परन्तु अब फिर से अंग्रेजी की हवा बढ रही है। सरकारी कार्यालयोंनौकरियों और परीक्षाओं में तो अंग्रेजी का दबदबा है ही। सामाजिक कार्यक्रमों में विशेषकर विवाह शादी के आमन्त्रण पत्रों तक में अंग्रेजी का भूत हावी हो रहा है। आर्यसमाज के प्रवर्त्तक स्वामी दयानन्द जी ने अहिन्दी भाषी होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया था। अपने ग्रन्थों और भाषणों में भी उन्होंने उसका प्रयोग किया। परन्तु अब आकर हिन्दी के प्रचारक और समर्थक भी थकते से नजर आ रहे हैं। आर्यसमाज भाषायी स्वाभिमान देश में जागृत करने के लिए यदि आगे आता है तो दूसरे लोग भी उसके पीछे चलेंगे। क्योंकि आर्यसमाज को इसके माध्यम से अपने किसी राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति नहीं करनी है इसलिए भी उसकी आवाज स्वागत योग्य होगी। देश आज सामाजिक और राजनीतिक क्रान्ति के चौराहे पर है। इसमें भाषायी स्वाभिमान का प्रश्न भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। राष्ट्रीय चेतना जगाने में भाषा की भी अपनी प्रमुख भूमिका रहती है। आर्यसमाज अपने कार्यक्रमों में इसका समावेश करे। इसी तरह के कई और भी ज्वलन्त प्रश्न हैं जिनको आर्यसमाज अपने कार्यक्रम में स्थान दे तो देश उसे हाथों-हाथ उठा लेगा।

राजनीतिक दल न होते हुए भी आर्यसमाज देश की वर्तमान और भावी राजनीति को स्वस्थ दिशा देने का काम आसानी से कर सकता है। सत्ता की राजनीति को सेवा की राजनीति में बदलने का काम प्रचलित राजनीतिक दलों द्वारा सम्भव नहीं है। यह आर्यसमाज जैसे निष्पक्ष और तटस्थ संगठन ही कर सकते हैं। दशरथ की राजसभा में जो काम महर्षि वशिष्ठ का था वह ही आज आर्यसमाज को निभाना होगा। किसी भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर शासन और समाज दोनों आर्यसमाज के संकेतों की आंख उठाकर प्रतीक्षा करें, इस स्थिति में यदि आर्यसमाज आ गया तो इतिहास में अमर हो जायेगा। - प्रकाशवीर शास्त्री

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Social and political reforms complement each other. Arya Samaj knew it from the beginning. That is why the Arya Samaj took special effort from the beginning to improve the education and social status of Harijans, tribals, women. Had Hindu society also supported it, the picture would have been different today. Nevertheless, the services of Arya Samaj performed in this region in a hundred hundred years have become a matter of history today. 

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