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जीने के रास्ते

संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्
देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते।

ईश्‍वर ने सृष्टि की उत्पत्ति जीवों की उन्नति के लिए की है। मनुष्य के शरीररूपी रथ में प्रभु ने अपार कृपा से दस घोड़ों को जीत दिया ताकि मनुष्य ज्ञानरूपी और कर्मरूपी घोड़ोंवाले रथ पर बैठकर संसार-यात्रा करे और संसार में आत्मिक और भौतिक उन्नति करे। यह महान् आश्‍चर्य की बात है कि मनुष्य ने अपने बारे में कभी नहीं सोचा और इस सुन्दर रथ पर बैठा हुआ रथ को विषयों की ओर हाँक रहा है, या स्वयं रथ हाँका चला जा रहा है क्योंकि रथी को पता ही नहीं अपने स्वरूप का।

Ved Katha Pravachan - 17 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

मनुष्य अपने को सुखी-संपन्न देखना चाहता है और यह तभी सम्भव है यदि हमारी आन्तरिक शक्तियाँ हमारा साथ  दें। हम किस प्रकार दुःख में अपना सन्तुलन बनाए रख सकते हैं, यह हमारे लिए बड़े महत्व की बात है। निजी स्वार्थ अविद्या, राग, द्वेष ने जीवन को ग्रसित कर रखा है और इसी कारण मनुष्य कुछ भी आगे-पीछे की नहीं सोच पाता।  इन कठिन परिस्थितियों में जीने की राह खोज निकालना हमारे लिए बड़े महत्व की बात है। जो अन्तर्द्वन्द्व आज दिखाई पड़ रहा है वह एक पागलपन की निशानी है और यह सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है।

यह संसार परमात्मा के वैज्ञानिक नियमों पर ठीक चल रहा है और संसार में मनुष्य के सुखी रहने की समुचित व्यवस्था है, परन्तु ज्ञान के अभाव में मनुष्य जीने का रास्ता नहीं खोज पा रहा है। समभाव ही जीवन है। समभाव ही ज्ञान है। इतने बड़े संसार में समभाव रखना ही जीने का उचित मार्गदर्शक बन सकता है। जीवन-यात्रा आरम्भ होते ही यह विकृति जीवन में आ जाती है और इसका कारण प्रकृति है। प्रकृति का स्वभाव है विषमता पैदा करना और मनुष्य इसको न समझकर अपना स्वभाव विकृत बना लेता है और विकृतियों के कारण जीवन को सही दृष्टिकोण नहीं मिल पाता।

जीव-जीवात्मा, प्रकृति और परमात्मा को समझे बिना जीवन को सही मार्ग पर नहीं ले जाया जा सकता। हमें अपने जन्म के कारणों को पहले समझना होगा। हम संसार में अकेले आते हैं और अकेले ही चले जाना होता है। जीवन में प्रकृति के बन्धन हमें जकड़े रहते हैं और उसे ही हम जीवन समझ बैठते हैं। जीवात्मा को ज्ञान हो नहीं पाता, अच्छे-बुरे का। विवेक हम नहीं कर पाते, जीवात्मा के ज्ञान के अभाव के कारण। संसाररूपी खेल को समझना जीवात्मा के द्वारा ही संभव है, परन्तु जीवात्मा तक पहुँचने के लिए कई दरवाजों को पार करना पड़ता है। वे दरवाजे प्रकृति द्वारा निर्मित भौतिक दरवाजे हैं जिसका भेदन भी ज्ञान द्वारा ही सम्भव है। संसार चक्रव्यूह की रचना के समान है जिसमें दरवाजों को भेदना होता है, तभी जीवात्मा तक पहुँच विजय प्राप्त हो सकती है।

मनुष्य अंधकारमय योनियों से गुजरता हुआ मानव-शरीर धारण करता है। प्रकृति इसका पालन-पोषण करती है, परन्तु यह सबकुछ होते हुए भी जीवात्मा का मार्ग अलग है। शरीर-पोषण संसार की एक व्यवस्था है। जीवात्मा को जानना ही जीवन को सही मार्ग पर ले जाना है।

योगाभ्यास द्वारा जीवात्मा को जाना जा सकता है। संसार में गति का अध्ययन करना होता है - study of motion अपने में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। संसार की प्रत्येक वस्तु गतिशील है, परन्तु गतियों में विविधता है। गति को ठीक प्रकार से जान लेना और सही विवेचन करना साधारण बात नहीं है। गति भी सार्थक और निरर्थक दो प्रकार की हो सकती है ।

Motion with a purpose can show us the right way.

मनुष्य जीवन की सफलता और सही मार्गदर्शन हमें प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं but we know nothing about Nature, इसीलिए जीवन में जीने का सही रास्ता ढूँढ पाना भी उतना ही कठिन है जितना कि Study of Nature (प्रकृति का अध्ययन) है।

सही मार्ग यही है, इसको नकारा नहीं जा सकता। जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ। रास्ता मिलता है और योगाभ्यास, प्रभु चिन्तन और प्रभुप्रेम इसके रास्ते हैं। एक रास्ते पर चलकर आगे के रास्ते को जानना होता है।

यह आज की सबसे जरूरत है कि हम अपने रास्ते को बदलें। भौतिक युग की माँग है कि संसार में आकर मनुष्य भौतिकता से कैसे बचकर निकल सकता है? यह एक मनोविज्ञान की बात है कि संसार में संसार को समझना। आत्मा एक विशेष तत्व है और इस तत्व को जान लेने से मनुष्य स्वयं पार उतर सकता है और संसार के दिव्य स्वरूप को देखकर अपना असल मार्ग खोज निकालता है। जीवन को आसान बनाने के लिए मनुष्य आत्मतत्व को जानकर यथार्थ की ओर बढ़ सकता है। प्रयत्न करना ही आत्मतत्व की निधि है और हर कार्य को  आसान करना ही जीवन की सफलता है। - कुलभूषण सँभरवाल

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Man wants to see himself happy and this is possible only if our internal powers support us. How we can maintain our balance in grief is of great importance to us. Personal self-interest, ignorance, raga, malice have engulfed life, and that is why humans cannot think of anything back and forth. It is a matter of great importance for us to find a way to live in these difficult situations. The conscience that is visible today is a sign of madness and it is visible everywhere.

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