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दुःख और अशान्ति के मूल कारण

संसार में जो दुःख और अशांति है इसके तीन मूल कारण हैं। अज्ञान, अभाव, अन्याय। जब तक इन कारणों को दूर न किया जाए तब तक सुख और शांति नहीं हो सकती।

अज्ञान - अज्ञान के कारण लोग कई प्रकार के मिथ्या विश्‍वासों में फँसकर बहुत दुःख उठाते हैं। संसार में इस प्रकार अनेक प्रकार के मिथ्या विश्‍वास फैले हुए हैं। परन्तु मैं इस लेख में केवल कुछ बातों का वर्णन करना चाहता हूँ। 

Ved Katha Pravachan - 14 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

जो लोग निराकार शुद्ध चेतन सर्वज्ञ ईश्‍वर के स्थान पर अपने प्रकार के देवी-देवताओं की जड़ मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करते हैं, वे घोर अन्धकार को प्राप्त होकर बहुत दुःख उठाते हैं, क्योंकि उपास्य देव के गुणों को ही उपासक ग्रहण करता है। इसलिए जड़ मूर्तियों के उपासक जड़त्व को ही ग्रहण करते हैं। इससे यह लोग उस परम आनंद से वंचित रह जाते हैं जो आनंद, आनंद-स्वरूप सुखस्वरूप परमात्मा की उपासना से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न देवी- देवताओं की पूजा से अपने मत-मतान्तर फैल जाते हैं, जिससे आपस में विरोध बढ़कर लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं जो कि बहुत ही, दुःख का कारण होते हैं।

जो लोग ईश्‍वरीय ज्ञान को वेद न मानकर, उसके स्थान पर मनुष्यकृत ग्रंथों में विश्‍वास रखते हैं और उनमें लिखी हुई सृष्टि नियम के विरुद्ध, विज्ञान और बुद्धि के विपरीत, असत्य कहानियों को सत्य मान लेते हैं, वे लोग कई और अन्धविश्‍वासों में फँसने से नहीं रह सकते।

जो लोग राम-कृष्ण आदि महापुरुषों को ईश्‍वर का अवतार मानकर इन महापुरुषों के जीवन से कोई भी शिक्षा ग्रहण नहीं करते, और इस अन्धविश्‍वास के कारण इन महापुरुषों के नाम की माला जपने से मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, यज्ञ परोपकार आदि शुद्ध कर्मों के कारने की आवश्यकता नहीं समझते, वे स्वार्थ परायण बनकर अशुभ कर्मों में फँस जाते हैं। अशुभ कर्मों के करने से दुःख और अशांति तो बढ़ती ही है।

जिन लोगों का विश्‍वास है कि गंगा-यमुना आदि नदियों में स्नान करने से मुक्ति मिलती है, वे दूर-दूर से यात्रा करने का कष्ट सहकर कुंभ आदि मेलों पर भी इन नदियों में स्नान करने के लिए जाते हैं। कुम्भ आदि जाकर क्या दुर्गति होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। कइयों की जेब कट जाती है, कई स्त्रियों का अपने पतियों से और कई बच्चों का अपने माता-पिता से साथ छूट जाता है। एक-दूसरे को तलाश करने में बहुत परेशान होते हैं। स्नान के समय जो धक्कमपेल होती है, उसमें को कई बेचारों की तो मृत्यु ही हो जाती है, कई घायल हो जाते हैं, कई दब जाते हैं, कई नदी में डूब जाते हैं। तात्पर्य यह कि उस समय प्रलयकाल का सा दिखाई देता है। ऐसे अवसरों पर पंडे-पुजारी भी भोले-भाले श्रद्धालुओं को खूब लूटते हैं। इस प्रकार यह सस्ती मुक्ति के अभिलाषी लोग अपने समय और धन का नाश तो करते ही हैं, परन्तु महाकष्टों और दुःखों को भी सहते हैं।

भूत-प्रेत, डाकीनी-शाकिनी, पिशाच, शैतान आदि कोई सत्ता नहीं है। वे केवल भ्रम हैं। किन्तु इस भ्रम के कारण भी बहुत से लोग बिना बात के ही डरते रहते हैं। ऐसे लोगों में यदि किसी को भी कोई सन्निपात, मिरगी अथवा कोई मानसिक रोग हो जाता है और अंट-शंट बकने लगता है, तब उस रोगी के किसी रिश्तेदार, किसी वैद्य या डॉक्टर से इलाज न कराकर, यह समझकर कि इस रोगी के रोग को भी बढ़ा लेते हैं और कभी उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं। इस प्रकार कष्ट उठाते हैं, दुःखी होते हैं। 

हमारी अपनी बिरादरी का एक सज्जन पुरुष, जो अध्यापक है, उसका छोटा बच्चा बीमार हो गया। उसने कुछ इलाज कराया, परन्तु बच्चे को आरान नहीं आया। तब वह किसी के कहने पर अपने बच्चे को किसी साधु के पास ले गया। साधु ने कहा कि बच्चे के मस्तिष्क पर किसी भूत-प्रेत का प्रभाव है, यदि इसके मस्तिष्क से खून निकाला जाए तो भूत निकल जाएगा और यह ठीक हो जाएगा। पहले तो बालक का पिता घबराया, फिर साधु की बातों में आकर बच्चे को साधु के हाथों में दे दिया। साधु ने बच्चे के मस्तिष्क में चाकू मारकर खून निकाला। बच्चा पहले ही काफी कमजोर था। खून निकलने से बच्चा मर गया। इस प्रकार बच्चे के मरने से बच्चे के पिता को कितना असहनीय दुःख हुआ, इसका वर्णन करना कठिन है। इसका कारण केवल मात्र अज्ञान ही तो है। 

फलित ज्योतिष में विश्‍वास रखने वाले अपने सब दुःखों का कारण ग्रह की चाल को ही मानते हैं। इन लोगों पर कभी शनि और मंगल क्रुद्ध होते हैं। कभी इन पर बुध और बृहस्पति सवार हो जाते हैं। इन ग्रहों से बचने के लिए भोले-भाले लोग कई प्रकार के पूजा-पाठ और जाप आदि कराते हैं। इनके अज्ञान का लाभ उठाकर चालाक, दंभी और ठग लोग इनको अपने जाल में फँसाकर खूब लूटते हैं। इस प्रकार इनके दुःख दूर न होकर उलटा बढ़ जाते हैं। 

ऐसे सम्प्रदाय, जो केवल यीशू मसीह को ही भगवान का एकमात्र पुत्र और केवल मोहम्मद साहब को ही परमेश्‍वर को परमेश्‍वर का रसूल मानते हैं और इन पर ईमान लाने को ही स्वर्ग का साधन मानते हैं, उनके मत के अतिरिक्त शेष सब मतो के लोग काफिर हैं, ऐसे सम्प्रदाय संसार में सबसे अधिक अशान्ति  फैलाते हैं। अपने को अच्छा अन्यों से बुरा समझना, प्रेम के स्थान पर घृणा का प्रचार करना, इससे अधिक और क्या होगा। 

अभाव - भारत वर्ष में कई वस्तुओं का अभाव है जो दूसरे देशों से मंगवानी पड़ती है। परन्तु जनसाधारण की जीवनोपयोगी भोजन-वस्त्र आदि की कमी नहीं है। फिर भी अधिक लोगों को खाने की रोटी, पहनने को वस्त्र, रहने को मकान हीं मिलता। शीत ऋतु में रात को जब मकान के भीतर रजाई ओढ़कर भी मनुष्य सर्दी अनुभव करता है, उस कड़ाके की सर्दी में मैंने स्वयं अपनी आँखों से, दिल्ली चाँदनी चौक फव्वारा बस-स्टैण्ड पर कई मजदूरों को रात के समय नीले आकाश की छाँव में टाट ओढ़कर सोए देखा है। ये बेचारे कितने कष्ट में हैं। आँखों में आँसू आ जाते हैं। जब मनुष्य की स्त्री फटे-पुराने चीथड़ों में शीत से ठिठुर रही हो और वह उसे वस्त्र न दे सके, जब मनुष्य की सन्तान या उसकी पत्नी या वह स्वयं बीमार हो, किन्तु दवाई का प्रबन्ध न हो सके, जो मनुष्य अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता हो, परन्तु पढ़ाई खर्च पूरा न कर सकता हो, जब मनुष्य पर कोई दुःख-सुख आ जाए और कोई उसकी सहायता करने वाला न हो, ऐसी अवस्था में उसका हृदय फटेगा  नहीं, तो क्या होगा? भारत वर्ष में अधिक संख्या ऐसे लोगों की है जिनकी धन के अभाव के कारण साधारण आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं होतीं। इससे इनका मन दुःखी और अशान्त हो जाता है। इनकी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है और जब इनको धैर्य देने वाला भी कोई नहीं होता, तब ये अभागे मनुष्य या तो आत्महत्या कर लेते हैं या ईसाई पादरियों अथवा मौलवियों के जाल में फँसकर अपने पूर्वजों का धर्म गँवा बैठते हैं और भारतवर्ष के लिए कई प्रकार की उलझनें उत्पन्न कर देते हैं। 

अन्याय - महर्षि स्वामी दयानंद ने लिखा है कि पापी दुराचारी चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका वाणी से भी सत्कार नहीं करना चाहिए, और धर्मात्मा सदाचारी चाहे कितना भी निर्बल- निर्धन क्यों न हो, उसका आदर सत्कार अवश्य करना चाहिए। परन्तु वर्तमान समय में लोग इसके विपरीत चलते हैं। धनवान व्यक्ति चाहे कितान भी झूठा, फरेबी, बेईमान, दुराचारी और अयोग्य क्यों ना, फिर भी समाज में उसका अधिक से अधिक सम्मान होता है, क्योंकि वह सभाओं संस्थाओं को दान दे सकता है। बड़े-बड़े नेताओं को पार्टियाँ दे सकता है। परन्तु निर्धन चाहे कितना भी योग्य, विद्वान, सदाचारी, धर्मात्मा क्यों न हो, उसका समाज में कोई नहीं होता। क्या यह अन्याय नहीं? एक धनवान व्यक्ति बड़े से बड़ा अपराध करके भी घूस देकर दंड से बच सकता है, परन्तु एक निर्धन व्यक्ति यदि किसी अपराध के संदेह में भी पकड़ा जाए तो इसका छुटकारा कठिन होता है। निर्धन की न कोई जमानत देता है, और न उसके लिए कोई गवाही देता है। यह कितना घोर अन्याय है। जो लोग प्रातः से सायं तक परिश्रम अथवा मजदूरी करते हैं, उन्हें तो भरपेट रोटी नहीं मिलती, परन्तु जो कुछ भी काम नहीं करते उन्हें अधिक खा-खाकर अजीर्ण हो जाता है।

सत्य तो यह है कि अमीर के कुत्ते भी गदेलों पर आराम करते हैं, कारों में घूमते हैं, दूध और मक्खन खाते हैं। परन्तु गरीब के बच्चों के भाग्य में रूखी रोटी भी नहीं होती। समाज का इससे अधिक अन्याय और क्या हो सकता है? सवर्ण हिन्दू हरिजनों पर कितना अत्याचार करते हैं? यदि हरिजन बन्धु कानून का सहारा लेना चाहें तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है और वे भय के कारण चुपचाप अत्याचार सहन करते रहते हैं। कई युवक बिना दहेज के किसी निर्धन कन्या से विवाह नहीं करना चाहते चाहे वह कितनी भी सुन्दर, सुशील और योग्य क्यों ना हो। क्या यह पुरुष जाति का स्त्री जाति के प्रति घोर अन्याय नहीं? बड़े-बड़े साहूकार गरीबों को अधिक से अधिक ब्याज पर उधार देकर आयुपर्यन्त उनका खून चूसते हैं। क्या यह कम अत्याचार है?

प्रातःकाल सूर्य उदय होने से पूर्व सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव के फैशन और पेट के लिए लाखों गौएँ काट जाती हैं। क्या यह अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा नहीं? यह कितना घोर पाप है? काला धन्धा करने वालों, घूस लेने और देने वालों, वस्तुओं में मिलावट करने वालों, चोर, डाकू, ठग धोखेबाजों के बढ़ने कारण केवल मात्र अन्याय ही तो है। यदि न्यायानुसार इन अपराधियों को कड़ा दंड दिया जाए तो ऐसे लोग भी सुधर सकते हैं।

सारांश यह है कि प्रत्येक बलवान निर्बल पर अत्याचार करता है। धनवान निर्धन का खून चूसता है। गुण्डे और बदमाश लोग शरीफ लोगों को सताते हैं। चालाक लोग भोले-भाले लोगों को ठगते हैं। जिधर भी देखो अन्याय और अत्याचार ही दिखाई देगा।

पाठक वृन्द, मैंने संक्षेप से इस लेख में अज्ञान, अभाव और अन्याय के विषय में कुछ निवेदन किया। दुःख और अशान्ति के मूल कारण हैं। इन कारणों का दूर करने से ही सुख और शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है। प्रत्येक आर्य नर-नारी का मुख्य का एवं मनुष्य मात्र का यह मुख्य कर्तव्य है कि वह अज्ञान, अभाव और अन्याय के विरुद्ध लड़े ताकि संसार में सुख और शान्ति चिरस्थायी हो सके।  पिशोरीलाल प्रेम

 

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People who do not receive any education from the lives of these great men, considering Rama-Krishna etc. great men as incarnations of God, and due to this blindness, by chanting the garlands of the names of these great men, one can get salvation, Yajna benevolence etc. of pure deeds. They do not understand the need to do carnage, they become selfish and are trapped in inauspicious deeds. Unhappiness and unrest increase due to inauspicious deeds.

 

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