यह अस्थिर और चंचल मन, जिस-जिस कारण से संसार में जाए, उसे उससे हटाकर बार-बार आत्मा में लगाया जाए। संसार के विषयों से विपरीत परमात्मा का जो स्वरूप विशेष आकर्षक लगे-मन, बुद्धि को उसमें एकाग्र करने का सतत अभ्यास करते रहें। वैराग्य और श्रेष्ठ चिंतन के अभ्यास से ही प्रलोभन से मुक्ति मिल सकती है। यह सत्य हृदयंगम होने पर साधक फिर सच्चिंतन को नहीं छोड़ता और सतत अभ्यास का अवलंबन लेते हुए इंद्रियों व मन को साधता है और आत्मसिद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
This unstable and restless mind, for whatever reason it enters the world, should be removed from it and applied again and again in the soul. In contrast to the objects of the world, whatever form of God you find particularly attractive - keep practicing to concentrate the mind and intellect in it. Freedom from temptation can be achieved only through the practice of dispassion and elevated contemplation. When this truth is attained, the seeker does not give up on the real thinking and, taking the support of continuous practice, cultivates the senses and the mind and proceeds on the path of self-realization.
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नास्तिकता की समस्या का समाधान शिक्षा व ज्ञान देने वाले को गुरु कहते हैं। सृष्टि के आरम्भ से अब तक विभिन्न विषयों के असंख्य गुरु हो चुके हैं जिनका संकेत एवं विवरण रामायण व महाभारत सहित अनेक ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत काल के बाद हम देखते हैं कि धर्म में अनेक विकृतियां आई हैं। ईश्वर की आज्ञा के पालनार्थ किये जाने वाले यज्ञों...
मर्यादा चाहे जन-जीवन की हो, चाहे प्रकृति की हो, प्रायः एक रेखा के अधीन होती है। जन जीवन में पूर्वजों द्वारा खींची हुई सीमा रेखा को जाने-अनजाने आज की पीढी लांघती जा रही है। अपनी संस्कृति, परम्परा और पूर्वजों की धरोहर को ताक पर रखकर प्रगति नहीं हुआ करती। जिसे अधिकारपूर्वक अपना कहकर गौरव का अनुभव...